114 साल में पहली बार नहीं लगेगा पीरानपीर-शीतलामाता का मेला

114 साल में पहली बार पीरानपीर-शीतलामाता मंदिर समिति के तत्वावधान में लगने वाला एक माह का मेला इस साल कोराेना संक्रमण के कारण नहीं लगेगा। साथ ही यहां पर होने वाले डेग (गर्म चावल की प्रसादी की लूट) का आयोजन भी नहीं किया जाएगा। न ही चादर व संदल का आयोजन किया जाएगा। मेले व कार्यक्रम में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
इंदौर-इच्छापुर हाईवे से लगी कृषि उपज मंडी के पास पीरानपीर-शीतला माता मंदिर टेकड़ी है, जो शहर के लिए सद्भावना की टेकड़ी कहलाती है। इस पहाड़ी पर जहां एक ओर मुस्लिम समाज के पीर बाबा की मजार है। वहीं दूसरी ओर शीलता माता का प्राचीन मंदिर स्थापित है। जहां पर साल भर विभिन्न धार्मिक आयोजन होते हैं।

1906 में लगा था पहला मेला : संगठनों द्वारा विभिन्न धार्मिक आयोजन भी होते हैं
होल्कर रियासत के रेवेन्यू मिनिस्ट राव साहब नानकचंद्र ने 1906 में पहली बार यहां नियमित मेला लगाए जाने का आदेश जारी किया था। तब नायब तहसीलदार अखेचंद ने मेला आयोजित करने का पहला आदेश जारी किया था। इसके बाद से लगातार हर साल मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें हिंदू व मुस्लिम समाज द्वारा विभिन्न धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं।

हजरत जमालुद्दीन शाह कादरी रे अलैह आए थे
करीब 700 साल पहले हजरत जमालुद्दीन शाह कादरी रे अलैह बगदाद से यहां आए थे। वह हजरत अब्दुल कादर जीलानी के तीसरे खलीफा है। इस पहाड़ी पर आकर खुदा की इबादत की। दीन-दुखियों की सेवा की। इनके इंतकाल के बाद मुरिदों ने यहीं दफना दिया। मजार बना दी। तब से यह पीरानपीर दरगाह के नाम से मशहूर हो गई। मुगलकालीन इतिहास के अनुसार 1684 ई में दक्षिण पक्ष से असीरगढ़ होते हुए निजाम और मराठों से लड़ने के लिए औरंगजेब ने कूच किया। तब इसी पहाड़ी के पास मैदान पर फौज का डेरा डाला था। उसने पहाड़ी पर दरगाह के पास नमाज अदाकर दक्षिण फतह की दुआ मांगी। औरंगजेब की दुआ पूरी होने पर बनकुवर नदी के किनारे एक बस्ती बसा दी। इसका नाम गुलशनाबाद (फूलों की बस्ती) रख दिया। इसका बाद में सनावद नाम रखा गया। वहीं पहाड़ी पर शीतला माता का प्राचीन मंदिर है। इसकी पूजा-अर्चना कर हिंदू समाज के लोग शुभ काम की शुरुआत करते हैं।



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Piranpir-Shitalamata fair will not be held for the first time in 114 years


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