सोयाबीन, मूंग का 34 लाख 50 हजार क्विंटल से ज्यादा उत्पादन प्रभावित होगा
लंबे समय के इंतजार के बाद आई बारिश ने जहां भारी तबाही मचाई है वहीं फसलें भी चौपट कर दी हैं। भारी बारिश और बाढ़ के कारण नसरुल्लागंज, बुदनी, रेहटी और इछावर क्षेत्र में करीब 2.30 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में सोयाबीन और मूंग का उत्पादन न के बराबर होने का अनुमान है। कृषि के जानकारों की मानें तो जिले में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन होता है।
इस तरह जिले में करीब 34 लाख 50 हजार क्विंटल से ज्यादा उत्पादन प्रभावित होने का अनुमान है। हालांकि राजस्व विभाग का अमला नुकसान का सर्वे करने में जुटा है। स्थिति यह है कि फसलों के नुकसान का असर बाजार पर भी पड़ेगा। क्योंकि कोरोना काल में मंदी के चलते बाजार पूरी तरह से टूट गया है। ऐसे में अब नई उपज की आवक होने पर फिर से बाजार की रौनक लौटने की संभावना थी लेकिन इस नुकसान के चलते अभी कुछ महीने और बाजार संभलने की स्थिति नहीं है।
ऐसे समझें नुकसान : एक हेक्टेयर में औसतन 15 क्विंटल की पैदावार
बता दें कि क्षेत्र में सोयाबीन का औसतन उत्पादन 15 से 20 क्विंटल माना जाता है। सीजन में 1 क्विंटल सोयाबीन की कीमत करीब 3 हजार रुपए होती है। इस तरह एक हेक्टेयर क्षेत्र में 45 हजार रुपए का नुकसान हुआ है तो 2.30 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 3 अरब 45 लाख रुपए के अधिक नुकसान का अनुमान है। अभी सर्वे का काम चल रहा है। हो सकता है नुकसान का प्रतिशत और अधिक बढ़ जाए।
बाढ़ ग्रस्त इलाके में सर्वे के बाद पूरी स्थिति साफ होगी
^अतिवृष्टि और बाढ़ से जिले में करीब 2 लाख 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की फसलों को नुकसान हुआ है। करीब 60 से 70 प्रतिशत नुकसान है। सर्वे किया जा रहा है, उसके बाद ही स्थिति साफ होगी।
-एसएस राजपूत, उपसंचालक कृषि
फसल में तीन तरह से हुआ नुकसान
1. बाढ़ से फसलें हुई खराब : पिछले दिनों हुई बारिश के बाद नदी-नालों के किनारे की पूरी फसल बाढ़ से बर्बाद हो गई। नर्मदा और पार्वती जैसी नदियों ने तो आसपास के कई गावों को चपेट में लिया था। बाढ़ में पानी का तेज बहाव फसलों को ही उखाड़कर ले गया। इसके साथ ही खेतों में रपा जम गया है।
2. जड़ों में सड़न, पौधे हो गए पीले : खेतों में पानी भरे रहने के कारण फसलों की जड़ों में सड़न लग गई और पूरे पौधे पीले हो गए। तना मक्खी तना और पत्तों में छेद करके फसल चट कर रही है। ऐसी स्थिति में तेज बारिश के बाद भी फसल सूखने लगी है। सीहोर, श्यामपुर, आष्टा और इछावर क्षेत्र में इस तरह का नुकसान ज्यादा है।
3. अफलन की स्थिति : जुलाई और आधा अगस्त महीने में हर दिन घने बादल छाए रहे, लेकिन बारिश नहीं हुई। ऐसे में पौधों को धूप नहीं मिली, यही वजह रही कि पौधों की ग्रोथ तो तेजी से हुई लेकिन जब फूल के समय सोयाबीन को पानी मिलना चाहिए था तो नहीं मिला, इस कारण सोयाबीन के फूल सूखकर गिर गए। इस तरह सोयाबीन में करीब 30 प्रतिशत नुकसान है। ये प्रारंभिक आकलन है।
नुकसान का असर बाजार पर भी पड़ेगा
लोगों को उम्मीद थी कि सोयाबीन के अच्छे उत्पादन से दीपावली के पहले बाजार में बूम आएगा। लेकिन फसलों में नुकसान को देखकर स्थिति बिगड़ती दिखाई दे रही है। क्षेत्र का बाजार भी कृषि पर ही निर्भर है। ऐसे में किसानों के साथ-साथ व्यापारी भी चिंतित हैं।
फायदा ऐसे नुकसान में बदला
इस साल जून महीने की शुरुआत में ही मानसून ने दस्तक दे दी थी। किसानों ने भी तुरंत ही बोवनी शुरू कर दी। अच्छी बारिश की उम्मीद में किसानों ने लक्ष्य से 316 प्रतिशत ज्यादा मूंग की बोवनी की थी। वहीं 3 लाख 37 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बोवनी की गई थी। जून में अच्छी बारिश के बाद जुलाई महीने से ही मौसम का मिजाज बदल गया। पूरे जुलाई महीने में खास बारिश नहीं हुई। अगस्त महीने से बारिश की उम्मीद थी, लेकिन करीब 20 दिनों तक सिर्फ घने बादल ही छाए रहे। ऐसे में सोयाबीन की ग्रोथ तो अच्छी हो गई, लेकिन उसे समय पर पानी नहीं मिल सका। जिससे अफलन की स्थिति बनी। 10 दिन पहले जिले में तेज बारिश हुई थी। इस दौरान करीब 150 गांवों की फसलों को भारी नुकसान हुआ था। किसी तरह किसान संभला तो ठीक एक सप्ताह बाद फिर से तेज बारिश का दौर चला। 2 दिन हुई बारिश से नर्मदा और पार्वती नदी सहित जिलेभर की सभी छोटी-बड़ी नदियां व नाले उफान मारने लगे। नर्मदा ने तो भारी तबाही मचाई।
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