बारगी नदी पर दोहा माॅडल पद्धति से बनाए छोटे-छोटे तालाब, रबी सीजन में भी पानी
टीकमगढ़ जिले में 1000.01 मिमी औसत बारिश होती है, लेकिन जिले के लिए सिंचाई के तहत शुद्ध बुवाई क्षेत्र का प्रतिशत काफी कम है। अगर औसत बारिश न हो रबी सीजन का रकबा घट कर 2 लाख हेक्टेयर से भी नीचे आ जाता है। जबकि औसत से अधिक बारिश होने के बाद जिले में यही रकबा 3 लाख हेक्टेयर को भी पार कर जाता है। बुंदेलखंड क्षेत्र में जनवरी फरवरी से ही किसान सिंचाई के पानी के लिए परेशान होने लगते हैं। कुछ ऐसे ही नजारे टीकमगढ़ जिले के ग्रामीण अंचलों में हर साल देखने को मिलते हैं। फरवरी महीने में फसल सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिलता। जिसका असर उत्पादन पर भी दिखाई देता है।
जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले का अधिकांश रकवा बारिश के पानी पर ही निर्भर है। रबी हो या खरीफ, दोनों फसलों उगाने के लिए पानी बहुत जरूरी है। बारिश खत्म होते ही क्षेत्र के छोटे-छोटे नालों में सिर्फ पथरीली जमीन दिखाई देती है। ऐसे में किसान रबी की फसल को सींचने में असहाय हो जाते हैं।
जतारा क्षेत्र में किसानों की समस्याओं काे देखकर सृजन संस्था ने अनूठा प्रयास शुरू किया। टीकमगढ़ जिले के जतारा सबडिवीजन में महाराष्ट्र की तर्ज पर दोहा माॅडल पद्धति को पिछले वर्ष अपनाया गया। जिससे किसानों और जानवरों को इस साल मई और जून में भी पानी असानी से उपलब्ध हो सका है। सृजन संस्था के टीम लीडर राकेश कुमार सिंह ने बताया कि पिछले साल डोर गांव में बारगी नदी के नाले में स्वर्ण धार ने पूनोल वाले पुल तक गड्डे किए थे। जिनकी लंबाई 20 मीटर, चौड़ाई 5 मीटर तथा गहराई 2 मीटर रखी गई थी। इस नाले एवं इसके साथ वाले नाले को मिलाकर इस साल अब तक 18 गड्डे या नालों में छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण किया जा चुका है।
सिंह ने बताया कि इस साल भी इस दोहा माॅडल के अंतर्गत 11 गड्डे करवाए गए हैं। जिससे आगामी वर्ष में किसानों को निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा। संस्था के टीम लीडर के अनुसार तत्काल दिखाई देने वाले लाभों के बावजूद, नालों की खुदाई के लिए विशिष्ट चुनौतियां हैं। प्रवाहित जलधाराओं पर तालाब जैसी संरचनाएं निरंतर गाद से युक्त होती हैं। उन्होंने कहा कि बिना किसी रखरखाव के इन संरचनाओं के लिए जीवनकाल चार से पांच साल है। दोहा मॉडल को लंबे समय तक कार्यात्मक रखने के लिए, जल-उपयोगकर्ता समूह एक संभावित समाधान हो सकता है। 2019 की गर्मियों और सर्दियों के दौरान, जल संचयन कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, कई 60 फीट लंबे, 15 फीट चौड़े और 6 फीट गहरे तालाब जैसे कि दोहा मॉडल ’नामक संरचनाओं को नालों की लंबाई के साथ खोदा गया था। इन गहरी संरचनाओं के बीच गहरा करने और मिट्टी की कलियों का निर्माण करके इन्हें खोदा गया। किसानों का दावा है कि इन संरचनाओं ने वर्षा जल के प्रवाह को संचित किया, जो हर साल बहकर बर्बाद हो जाता था। जतारा क्षेत्र के किसानों को लगता है कि वे अपनी रबी फसलों को दोहा मॉडल के साथ बेहतर ढंग से सिंचित कर सकते हैं।
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