देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने रखी थी गोलबाजार के शहीद स्मारक की नींवपं. नेहरू की आत्मा भी कचोटती होगी कि उन्होंने किस शहीद स्मारक का लोकार्पण किया
आजादी की लड़ाई में देश के मध्य स्थल महाकौशल का बलिदान किसी अन्य स्थलों से कम नहीं था। वीरों ने हँसते-हँसते प्राण की बाजी लगाई और माँ भारती के लिए अमर शहीद हो गए। हजारों नर-नारियों ने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया और उन्हें देश से खदेड़ने में सफल हो गए। ऐसे ही वीरों की शहादत को अक्षुण्ण्य बनाए रखने के लिए शहर के हृदय स्थल में शहीद स्मारक बनाने का निर्णय लिया गया।
करीब 15 एकड़ भूमि पर देश का सबसे विशाल और खूबसूरत शहीद स्मारक बनाने की आधारशिला 28 अक्टूबर 1948 को खुद देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने रखी थी और जब यह बनकर तैयार हुआ तो 26 अप्रैल 1956 को प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने इसका लोकार्पण किया।
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह वही शहीद स्मारक है जिसमें पूरे महाकौशल के शहीदों की स्मृतियाँ बसी हुई हैं, क्या यह वही शहीद स्मारक है जिसके निर्माण में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम शामिल हैं और क्या यह सचमुच वही शहीद स्मारक है जैसे कि देश के अन्य शहरों में भी ये बने हुए हैं। इसका जवाब मिलता ही नहीं। यह वही शहीद स्मारक तो कतई नहीं हो सकता जिसका सपना ठीक आजादी के बाद के लोगों ने देखा था, वे लोग जिन्होंने अंग्रेजों की लाठियाँ, गालियाँ और गोलियाँ खाईं थीं, उन्होंने ऐसे शहीद स्मारक की कतई कल्पना नहीं की होगी। निर्माण के ठीक बाद भले ही यह स्मारक खूबसूरत रहा हो लेकिन अब तो इसे शहीद स्मारक कहने में भी अच्छा नहीं लगता क्योंकि ऐसा लगता है कि जैसे हम शहीदों का अपमान कर रहे हों।
देश का सबसे खूबसूरत शहीद स्मारक यहीं होना चाहिए
देश का सबसे खूबसूरत शहीद स्मारक हमारे शहर में ही होना चाहिए क्योंकि यहाँ अंग्रेजों से भी पहले मुगलों से आजादी की लड़ाई लड़ी गई, जिसमें वीरांगना रानी दुर्गावती ने अपना बलिदान दिया। अंग्रेजों के समय भी इस शहर ने अपना खून न्यौछावर किया। जिस शहर में सेना और सुरक्षा से जुड़े एक दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण संस्थान हों, यदि वहाँ सबसे बड़ा और सबसे खूबसूरत शहीद स्मारक नहीं होगा तो फिर कहाँ होना चाहिए।
क्या यहाँ भी छला गया इस शहर को
हमारे शहर की किस्मत में हमेशा ही छला जाना लिखा रहा और लगता है कि शहीद स्मारक के मामले में भी इसे छला गया और शहीद स्मारक का नाम दिया गया और जो स्मारक बना वह आम आदमी से दूर होता गया। कम से कम शहीदों के साथ तो इस प्रकार का मजाक नहीं किया जाना चाहिए। जिस प्रकार राजधानी छीनी गई उसी प्रकार शहीद स्मारक के नाम पर भी एक तरह से छल ही किया गया, क्योंकि केवल नाम ही शहीद स्मारक है उसके अलावा तो ऐसा कुछ नहीं है कि शहीदों के परिजन या अन्य लोग यहाँ आएँ तो उन्हें लगे जैसे उनके अपने उन्हें महसूस कर रहे हों।
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