ढेंगदा में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर मजदूर परिवारों को खरीद कर दी तिरपाल

शहर में ढेंगदा पुलिया के पास सड़क किनारे रह रहे 8 आदिवासी मजदूर परिवारों को सिर ढकने के लिए मंगलवार को गोसेवक और चाइल्ड लाइन टीम के सदस्यों ने तिरपाल उपलब्ध कराए। इन युवाओं ने अपनी तरफ से पन्नी के तिरपाल खरीदकर डेरे पर जाकर जरूरतमंद परिवारों को प्रदान किए।
ढेंगदा पुलिया के पास कई दिनों से आदिवासी मजदूरों के आठ परिवार फटे पुराने टाट एवं बल्ली का डेरा बनाकर रह रहे थे। गर्मी में चिलचिलाती धूप में रह रहे इन परिवार के बच्चे और महिलाएं दिनभर धूप में तपते हैं। इन लोगों को बारिश से अपने ओढ़ने बिछाने के बिस्तर भीगने की चिंता भी सताने लगी। गोसेवक सोमवार शाम को ढेंगदा बस्ती में पहुंचे तो इन मजदूरों ने रोते हुए अपनी व्यथा सुनाई। उनका कहना था कि उनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं है। दो महीने से मेहनत मजदूरी नहीं मिलने के कारण बाजार से तिरपाल और बल्ली खरीदना संभव नहीं है। मानसून सीजन भी नजदीक है। बारिश होने पर उनका सामान भीग जाएगा, अपने बच्चों को कैसे सुलाएंगे। गोसेवकों ने यह बात चाइल्ड के अपने मित्रों को बताई। सभी ने मिलकर मंगलवार को तीन हजार रुपए इकट्ठे किए। इसमें कुछ पुलिसकर्मियों ने भी आर्थिक मदद दी। बाजार से तिरपाल और बांस की बल्ली खरीदकर ढेंगदा ले गए। सभी 8 परिवारों को यह तिरपाल और बल्लियां वितरित की गई। इससे उन लोगों ने अपनी टूटी फूटी छप्पर पर तानने का काम शुरू कर दिया। राघवेंद्र प्रताप सिंह कुशवाह ने बताया कि छप्पर तैयार होने पर मजदूर परिवारों के चेहरे खुशी से खिल उठे।
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