बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज सस्ती दवाओं से करते रहे डॉ. दास
महंगाई के इस दौरान में जहां चेकअप कराने में मरीज को 3 सौ से 4 सौ रुपए लगते हैं, ऐसे में जिला अस्पताल से रिटायर्ड डाॅक्टर मोहन दास मरीजों का 10 रुपए में इलाज करते रहे, ऐसा उन्होंने एक दो साल नहीं बल्कि 20 साल तक किया, लेकिन अब शरीर उनका साथ नहीं दे रहा है, ऐसे में उन्होंने दमोह छोड़कर अब अपने गृह राज्य आंध्रप्रदेश जाने का निर्णय लिया है।
सोमवार को उन्हें शहरवासियों ने मंच से सम्मानित कर विदाई दी। आमजन एवं गरीबों का सबसे सस्ता इलाज करने वाले डॉ. मोहन दास लगातार 52 साल तक दमोह में सेवाएं देते रहे। रिटायर्ड होने के बाद भी उन्होंने सेवाएं जारी रखीं, मगर अब वे गृह ग्राम अण्णाना जिला कृष्णा आंधप्रदेश जा रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों उनका स्वास्थ्य खराब है। यहां पर बता दें कि डॉ. मोहन दास ने इंदौर के मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद सबसे पहले दमोह जिले के बटियागढ़ अस्पताल में पदस्थ हुए थे।
यहां से करीब दो साल रहने के बाद उनका स्थानांतरण दमोह के जिला अस्पताल में हो गया। अपने मृदुभाषी स्वभाव एवं मरीजों की सेवाभाव के कारण वह कुछ ही समय में जिले भर में प्रसिद्ध हो गए। लोग अन्य डॉक्टरों की बजाय केवल डॉ. दास से ही इलाज कराना पसंद करने लगे। यहां से वर्ष 2000 तक रिटायर्ड होने के बाद मरीजों का इलाज प्रारंभ कर दिया।
10 रुपए में करते रहे इलाज
सेवानिवृत्ति के बाद भी उनका दमोह वासियों से गहरा लगाव था। यही कारण है कि वह अपने गृह गांव रवाना होने के बाद उन्होंने अपनी निजी क्लीनिक खोल ली। जहां पर वह आम जनता का महज 10 रुपए में ही इलाज करना शुरू कर दिया। वर्तमान समय में जहां डॉक्टर 300 से 400 रुपए ले रहे हैं, वहीं डॉ. दास अभी तक मरीजों से 10 रुपए ही लेते थे। खास बात यह है कि वह गरीबों को बहुत सस्ती दवाइयां लिखते हैं।
कई मरीजों की हालत देखकर उन्हें निशुल्क ही दवाइयां दे देते हैं। जिससे जिले भर के गरीब लोग डॉ. दास के पास ही इलाज कराने आते थे। डा. दास के अभिन्न मित्र राधिका श्रीवास्तव, रामकृष्ण राय ने बताया कि शासकीय सेवा से रिटायरमेंट लेने के बाद हर व्यक्ति आराम की जिंदगी जीना चाहता है, लेकिन डॉक्टर दास ने कभी आराम की जिंदगी नहीं जी। वह जब वह दमोह में पदस्थ हुए वह लगातार दमोह की जनता की सेवा में व्यस्त रहे।
पत्नी के निधन के बाद जागा सेवाभाव
डॉ. दास ने भास्कर को बताया वर्ष 1983 में अचानक बीमारी की वजह से उनकी पत्नी का निधन हो गया था। इसके बाद वह अकेले रहने लगे। इसके बाद उन्होंने मन ही मन प्रण किया कि जब तक उनका शरीर साथ देगा गरीबों एवं आमजनता की सेवा करते रहेंगे। यही कारण है कि सेवानिवृत्ति के बाद वह अपने गृह ग्राम न जाकर दमोह की जनता की सेवा करने का निर्णय लिया। सोमवार की शाम शहर के मानस भवन में वैश्य महासम्मेलन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में डॉ. दास का शहर के वरिष्ठ नागरिकों द्वारा स्वागत किया गया।
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